सोनीपत। जीवन की कठिनाइयाँ चाहे आर्थिक हों, सामाजिक हों या मानसिक, हर इंसान को कभी-न-कभी उनसे जूझना पड़ता है। लेकिन इन संघर्षों के बीच भी जीने का चुनाव करना ही असली साहस है। इसी सच्चाई को सामने लाती है डॉ. मीनाक्षी सहरावत की नई पुस्तक – “...और फिर मैंने मरना नहीं चुना!”
डॉ. मीनाक्षी, जो वर्तमान में एक विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं, ने इस किताब में अपने निजी अनुभवों और जीवन की चुनौतियों को पाठकों के सामने रखा है। यह किताब बताती है कि कैसे सबसे अंधेरे पलों में भी उम्मीद की रोशनी तलाश की जा सकती है और क्यों मरने की बजाय जीने का चुनाव हमेशा महत्वपूर्ण है।
पुस्तक में दो प्रकार की संपत्तियों का जिक्र है –
लेखिका के अनुसार यही अदृश्य संपत्तियाँ व्यक्ति को कठिनाइयों से पार पाने की शक्ति देती हैं।
डॉ. मीनाक्षी कहती हैं –
“जीते हुए इंसान अपनी कहानी बदल सकता है, लेकिन मरने से नहीं। गिरो, उठो, और अपने सपनों की ओर बढ़ो। हर संघर्ष आत्मशक्ति को पहचानने और आगे बढ़ने का अवसर है।”
यह पुस्तक न तो केवल सफलता की कहानियाँ सुनाती है और न ही पूर्णता का गीत गाती है। बल्कि यह उन हकीकतों को उजागर करती है जिनसे आम आदमी हर दिन गुजरता है। यही वजह है कि पाठक इसमें कहीं न कहीं अपनी झलक जरूर पाएंगे।
“...और फिर मैंने मरना नहीं चुना!” सिर्फ एक किताब नहीं बल्कि जीवन को नए नजरिए से देखने की प्रेरणा है।
और फिर मैंने मरना नहीं चुना!"
चाण्क्य का अपमान और प्रतिज्ञा: सम्राट धनानंद ने चाणक्य का अपमान किया और उसे अपने दरबार से निकाल दिया। इस अपमान से आहत होकर, चाणक्य ने नंदवंश को समाप्त करने की प्रतिज्ञा ली और मगध में चंद्रगुप्त मौर्य को राजा बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया।एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा लिखित विंग्स ऑफ फायर वास्तव में हमारे एपीजे अब्दुल कलाम के बारे में एक अच्छी और महान पुस्तक है कि कैसे वे अपने लक्ष्य तक पहुंचे। चाणक्य ने एक साधारण भेड़िया-बकरी चराने वाले बच्चे, चंद्रगुप्त में नेतृत्व और कौशल देखा और उसे अपना शिष्य बनाया। चाणक्य ने चंद्रगुप्त को नंदवंश के खिलाफ लड़ने के लिए रणनीति बनाई। इसमें सैन्य गठबंधन बनाना, नंदवंश की कमजोरी का फायदा उठाना और जनता का समर्थन प्राप्त करना शामिल था। चाण्क्य का भी रस्ता दोनों ओर जाता था जीवन और मौत लेकिन चाण्क्य ने संघर्ष का रास्ता तय किया।
बराक ओबामा द्वारा लिखित ड्रीम्स फॉर माई फादर एक अच्छी पुस्तक है जो उनके सपनों के बारे में और उन्हें अपने पिता से कैसे प्राप्त किया जाए इसके बारे में सिखाएगी।
ठीक उसकी प्रकार यह पुस्तक भी हैं, ... फिर मैने मरना नही चुना - एक आत्म-प्रेरणात्मक पुस्तक है जिसमें लेखिका ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों के माध्यम से यह दर्शाने की कोशिश की है कि जीवन के सबसे अंधेरे क्षणों में भी आशा और संघर्ष का रास्ता चुना जा सकता है। क्योंकि जीत और हार में कुछ ज्यादा फर्क नहीं, बल्कि बस एक कदम की दूरी हैं। क्योंकि कामयाबी संघर्ष के बीच में विजय की निर्माण खेलता हैं।
पुस्तक में उन परिस्थितियों का उल्लेख है जब व्यक्ति न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कठिनाइयों से जूझता है, उसके चारों ओर का समाज भी उसके प्रति अपना दृष्टिकोण बदल देताa है। जब जीवन की बुनियादी ज़रूरतें—रोटी कपड़ा और मकान—तक उपलब्ध नहीं होतीं, तब भी जीने का निर्णय सबसे महत्वपूर्ण बन जाता है। लेखिका का मानना है कि “जिंदा रहते हुए आप अपनी कहानी को बदल सकते हैं, मर जाने से नहीं।”
जीवन में डर और असुरक्षाएँ अनिवार्य हैं—चाहे वे आर्थिक हों सामाजिक हों या भावनात्मक। लेकिन व्यक्ति के पास दो प्रकार की संपत्तियाँ होती हैं:
दृश्य संपत्ति — धन, संसाधन, सुविधाएँ
अदृश्य संपत्ति — शिक्षा अनुभव व्यक्तित्व और मूल्य-तंत्र
इन्हीं अदृश्य संपत्तियों के सहारे कठिनाइयों को पार करने की क्षमता मिलती है। संघर्ष केवल पीड़ा नहीं देते बल्कि वे आत्मशक्ति को पहचानने सीखने और आगे बढ़ने का अवसर भी प्रदान करते हैं।
पुस्तक यह संदेश देती है कि हमेशा सफलता नहीं मिलती लेकिन कोशिश जारी रखना सबसे अहम है। व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि वह देखे जाने सुने जाने और गहराई से होने का हकदार है—न केवल दूसरों द्वारा बल्कि स्वयं द्वारा भी। लेखिका कहती हैं कि एक कैटरपिलर के तितली बनने की तरह हर यात्रा विकास रोमांच और सुंदरता से भरी होनी चाहिए। “असफल हो जाओ। गिरो। फिर उठो जागों और लक्ष्य प्राप्ति तक रुकों मत। अपने पंख फैलाओ और बिना शर्मिंदगी अपने जीवन को अपनाओ—क्योंकि आप मायने रखते हैं। आपके सपने आपकी आवाज़ आपकी यात्रा—सब मूल्यवान हैं।”
इसके साथ ही पुस्तक में संभावना की शक्ति और जैसे पहलुओं पर भी गहन विचार किया गया है। यह पुस्तक न केवल पढ़ने योग्य है बल्कि इसमें पाठक स्वयं को किसी न किसी रूप में अवश्य पाएँगे।
एक जीवन में हम कई जीवन जीते हैं। कुछ हमें पसंद होते हैं और कुछ हमें पसंद नहीं होते। कुछ हम संजोते हैं कुछ हम चाहते हैं कि हम मिटा दें लेकिन चाहे हम उनके बारे में कैसा भी महसूस करें हमें उनसे गुज़रना ही पड़ता है। मुझे पता है कि मैं इस यात्रा या बल्कि कहानी में अकेला नहीं हूँ। मेरे साथ आप वहाँ हैं वे वहाँ हैं और वास्तव में बहुत से अन्य लोग यहाँ हैं- अपनी कहानियों के साथ मुझे लेकर और मेरे साथ जुड़कर। कुछ कहानियाँ छोटी हैं कुछ लंबी हैं कुछ हल्की हैं और कुछ असहनीय रूप से भारी हैं। जीवन बिना किसी दया या अपवाद के सभी से सवाल करता है। यह किसी को नहीं छोड़ता। और जबकि हर किसी के संघर्ष अद्वितीय हैं कुछ सवाल दूसरों की तुलना में गहरे और कठिन हैं। कुछ लड़ाइयाँ भारी कठोर और कठोर होती हैं। कभी-कभी एक अंतहीन तूफान की तरह शांति का कोई संकेत नहीं दिखाते। उन पलों को याद करें जब भी आपने किसी तूफान का सामना किया हो- चाहे वह आपकी शैक्षणिक यात्रा या करियर विकल्पों से संबंधित हो या रिश्तों के मुद्दे या शायद आर्थिक कठिनाई या घर या बाहर कोई अन्य। उस पल के साथ आप अपनी भावनाओं, दुखों और संघर्षों को याद करेंगे। खैर मैं भी वहां से गुजरा हूं। और इसीलिए मैं आज यहां हूं - न केवल एक लेखक के रूप में न केवल एक शिक्षाविद के रूप में बल्कि एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो हमारे भीतर चल रही खामोश लड़ाइयों को समझता है। कोई ऐसा व्यक्ति जो जानता है कि निराशा के किनारे पर खड़े होने और यह सोचने पर कैसा लगता है कि क्या कोई रास्ता है।
पूरी शालीनता पूरी सकारात्मकता और पूरी प्रसन्नता के साथ यहां मौजूद सभी लोगों के सामने मैं अपनी पुस्तक प्रस्तुत करता हूं - "...और फिर मैंने मरना नहीं चुना!" लेकिन इसे पुस्तक कहने से पहले मैं यह कहना चाहूंगा कि यह जीवित अनुभवों का संग्रह है - मानवीय संघर्ष का उन क्षणों का जो हमारे विचारों को नया रूप देते हैं और उन विचारों का जो हमें चुनौती देते हैं और बदलते हैं।
पुस्तक जीतने या सफल होने के बारे में नहीं है। यह पूर्णता सफलता सकारात्मकता खुशी या निडरता के गीत नहीं गाएगी। बल्कि यह वास्तविकता की दुनिया के बारे में बात करेगी जहां पूर्णता सफलता खुशी और सकारात्मकता हमेशा के लिए मौजूद नहीं होती।
क्या आप इस बात से सहमत होंगे कि आप हमेशा खुश सकारात्मक और प्रेरित नहीं रह सकते मुझे यकीन…
लेखिका डॉ मीनाक्षी सहरावत एक विश्वविद्यालय में अस्सिटैंट प्रोफेसर हैं।
डा मिनाङी सहरावत जी बहुत ही अच्छा लेख आपने लिखा और आपकी बुक को देखकर लग रहा है कि व्यक्ति के जीवन में कितना भी दुख आ जाए। उसको कभी हार नही माननी चाहिए .
डा मिनाङी सहरावत जी बहुत ही अच्छा लेख आपने लिखा और आपकी बुक को देखकर लग रहा है कि व्यक्ति के जीवन में कितना भी दुख आ जाए। उसको कभी हार नही माननी चाहिए .
ललित , 2025-09-11 10:09:39
अति सुन्दर लेख लिखा डॉ मीनाक्षी सहरावत जी आपने