मूटकोर्ट हाल में छात्रों के बीच संवाद करते हुए डा0 मीनाक्षी सहरावत
समाज में आत्म-समझ और मूल्य-निर्माण पर कार्यशाला का आयोजन
सोनीपत,(DAINIK JAGRUK):(kuldeep ranga)
डॉ. भीमराव अंबेडकर राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, सोनीपत में "आत्म-व्यक्तित्व, मूल्य और आत्म-बोध" विषय पर एक महत्वपूर्ण कार्यशाला का आयोजन किया गया। यह कार्यशाला विद्यार्थियों को उनके व्यक्तित्व और जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करने, आत्म-संवेदनशीलता बढ़ाने और उनके मानसिक और भावनात्मक विकास को सशक्त बनाने के उद्देश्य से आयोजित की गई थी।
कार्यशाला के मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. मीनाक्षी सहरावत ने अपनी भूमिका निभाई और विद्यार्थियों से संवाद किया। डॉ. सहरावत ने आत्म-समझ और व्यक्तित्व विकास के विभिन्न पहलुओं पर गहन चर्चा की। उन्होंने बताया कि आत्म-ज्ञान और आत्म-संवेदनशीलता के माध्यम से हम अपने जीवन में बदलाव ला सकते हैं। उन्होंने विद्यार्थियों को यह समझाने की कोशिश की कि कैसे वे अपने आंतरिक मूल्यों को पहचानें और उन पर आधारित अपने जीवन के निर्णय लें। इसके अलावा, डॉ. मीनाक्षी ने मानसिक स्वास्थ्य और आत्म-मूल्य के महत्व को भी रेखांकित किया और इस बारे में विभिन्न सुझाव दिए। उन्होंने विद्यार्थियों को प्रेरित किया कि वे अपने आत्म-संवाद को सकारात्मक बनाए रखें और अपने मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें।
डॉ. मीनाक्षी सेहरावत ने कार्यशाला के दौरान विद्यार्थियों से खुलकर संवाद किया और उन्हें जीवन के विभिन्न संघर्षों से निपटने के उपाय बताए। उन्होंने विद्यार्थियों को आत्म-विश्वास बढ़ाने, तनाव से निपटने के तरीके और मानसिक सशक्तिकरण के बारे में भी समझाया। डॉ. सहरावत ने यह भी कहा कि आत्मनिर्भरता और मूल्य आधारित जीवन जीने से ही हम समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।
मुक्त और सकारात्मक वातावरण
कार्यशाला में ऐसा वातावरण निर्मित किया गया जिसमें विद्यार्थी बिना किसी डर या झिझक के अपने विचार व्यक्त कर सकें। यह संवाद अनौपचारिक चर्चाओं, छोटे समूहों में बातचीत, और प्रश्नोत्तर सत्रों के माध्यम से संचालित हुआ।
“जब हमें बोलने का अवसर मिला, तो लगा कि हमारी बातों का भी महत्व है,” – एक छात्रा का भावुक अनुभव। 2. साझा अनुभव, गहरी समझ
छात्रों ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों और जीवन की चुनौतियों को साझा किया – जैसे आत्म-संदेह, सामाजिक दबाव, मूल्य-संकट आदि। इन अनुभवों से सभी ने यह जाना कि हर कोई किसी न किसी रूप में संघर्ष कर रहा है – और यही संवेदनशीलता और सहृदयता को जन्म देती है। 3. विविध दृष्टिकोणों की प्रस्तुति
संवाद के दौरान यह देखा गया कि एक ही विषय को देखने के अनेक तरीके हो सकते हैं। किसी ने आत्मबोध को ध्यान और मेडिटेशन से जोड़ा, तो किसी ने सामाजिक कार्यों में भागीदारी को आत्म-समझ का मार्ग बताया। इससे विद्यार्थियों की सोच में विविधता और सहिष्णुता विकसित हुई। 4. नैतिक दुविधाओं पर चर्चा
कुछ चर्चाओं में विद्यार्थियों ने नैतिक दुविधाओं पर विचार किया – जैसे सही और गलत के बीच चुनाव कैसे करें, जब सामाजिक या पारिवारिक दबाव हो। इस पर समूहों ने मूल्य-आधारित निर्णय-लेने की प्रक्रिया पर चर्चा की। 5. संवाद से समाधान तक
संवाद केवल विचार-विनिमय तक सीमित नहीं रहा, बल्कि कई विद्यार्थियों ने अपने भीतर चल रहे तनाव, आत्म-संदेह या पहचान की उलझनों के समाधान खोजने शुरू किए। संवाद ने उन्हें आत्म-स्वीकृति और अन्य के प्रति सहानुभूति सिखाई।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर (डॉ.) देविंदर सिंह और कुलसचिव प्रो0 डा आशुतोष मिश्रा ने विद्यार्थियों से बातचीत की और इस कार्यशाला के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, "समाज में सफलता पाने के लिए आत्म-समझ और मूल्य का महत्व अत्यधिक है, और इस प्रकार की कार्यशालाओं से विद्यार्थियों को अपने भविष्य के निर्माण में सहायता मिलती है।" उन्होंने विद्यार्थियों को प्रेरित किया कि वे अपने जीवन में जो कुछ भी करें, उसमें अपने मूल्यों को सबसे पहले रखें।
सभी ने इस कार्यशाला के आयोजन की सराहना की और कहा कि इस तरह की कार्यशालाएँ विद्यार्थियों के मानसिक और भावनात्मक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
यह कार्यशाला विद्यार्थियों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर था, जिसमें उन्हें आत्म-निर्माण, उनके मानसिक स्वास्थ्य, और जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने के लिए प्रेरित किया गया।
कार्यशाला के आयोजन से विश्वविद्यालय ने अपने विद्यार्थियों के समग्र विकास और उनके व्यक्तित्व निर्माण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को और भी मजबूत किया।
इस मौके पर विश्वविद्यालय के, सीओई बलविंदर कौर, सहायक प्रोफेसर पंकज कुमार, पारुल, जनसंपर्क अधिकारी ललित कुमार और अन्य अधिकारीगण भी उपस्थित रहे।
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